गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मेलुहा के मृत्युंजय | The Immortals of Meluha | Amazon Book Review in Hindi |

"द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा" का सारांश: शिव की पौराणिक यात्रा


अमीश त्रिपाठी की पुस्तक "द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा" (The Immortals of Meluha) भारतीय पौराणिक कथाओं पर आधारित एक शानदार कल्पना है, जो शिव त्रयी (Shiva Trilogy) की पहली किताब है। यह किताब न केवल भगवान शिव की कहानी को एक नए रूप में प्रस्तुत करती है, बल्कि एक प्राचीन सभ्यता की गहराई, उनकी चुनौतियों और संघर्षों को भी दर्शाती है। अमीश ने भारतीय पौराणिकता को एक काल्पनिक परिप्रेक्ष्य में पुनः रचा है, जो एक आदर्श समाज की समस्याओं और उसके उद्धारकर्ता की यात्रा पर आधारित है। यह कहानी मानवीय गुणों और दोषों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भगवान शिव को एक सामान्य मानव के रूप में पेश करती है, जो धीरे-धीरे देवत्व की ओर अग्रसर होते हैं।



कहानी की पृष्ठभूमि

कहानी 1900 ईसा पूर्व में मेलुहा नामक एक आदर्श राज्य में घटित होती है। मेलुहा को लेखक ने भगवान राम के अनुयायियों द्वारा स्थापित एक परिपूर्ण राज्य के रूप में दिखाया है, जो अत्यधिक अनुशासित और सुव्यवस्थित है। यहाँ के लोग सोमरस नामक एक अमृत जैसे पेय का सेवन करते हैं, जो उन्हें लंबी उम्र और स्वास्थ्य प्रदान करता है। लेकिन मेलुहा को अब कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है – सोमरस की आपूर्ति में कमी और चंद्रवंशियों द्वारा हो रहे हमले।

चंद्रवंशी और नागा मेलुहा के शत्रु हैं, जो मेलुहा की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा हैं। मेलुहावासी मानते हैं कि उनका उद्धार केवल एक मसीहा द्वारा किया जा सकता है, जिसे "नीलकंठ" कहा गया है। नीलकंठ का प्राचीन भविष्यवाणी में उल्लेख है, जिसके अनुसार यह व्यक्ति ही मेलुहा को बुराई से बचाएगा और समाज में शांति और न्याय स्थापित करेगा।

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शिव का आगमन

मुख्य पात्र, शिव, तिब्बत के कैलाश पर्वत के पास के एक गोत्र के मुखिया हैं। शिव और उनके गोत्र के लोग निरंतर संघर्ष और युद्ध से थक चुके हैं। ऐसे में मेलुहा के अधिकारी नंदी शिव और उनके गोत्र को मेलुहा आने का निमंत्रण देते हैं, जहां उन्हें शांति और समृद्धि का वादा किया जाता है। मेलुहा में आने के बाद, शिव और उनके गोत्र के लोग सोमरस का सेवन करते हैं। शिव के शरीर में यह सोमरस एक असामान्य प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है और उनके गले का रंग नीला हो जाता है। इस घटना के बाद, शिव को "नीलकंठ" के रूप में पहचाना जाता है, और मेलुहावासी उन्हें अपने मसीहा के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।

शिव का संघर्ष और यात्रा

शिव, जो अब नीलकंठ की भूमिका में हैं, इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि क्या वे सच में वह मसीहा हैं, जिसकी भविष्यवाणी की गई थी। वे अपनी मानवता और इस महिमामंडित भूमिका के बीच फंसे हुए महसूस करते हैं। मेलुहा के लोग उन्हें भगवान के रूप में देखना शुरू कर देते हैं, लेकिन शिव को यह समझने में समय लगता है कि उनकी भूमिका केवल शारीरिक बल से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

इस दौरान, शिव की मुलाकात सती से होती है, जो मेलुहा के राजा दक्ष की बेटी हैं। सती एक महान योद्धा हैं, लेकिन उनके जीवन में कई सामाजिक बाधाएं हैं, क्योंकि वे "विकर्म" (अशुभ) मानी जाती हैं। शिव और सती के बीच धीरे-धीरे प्रेम विकसित होता है, और सती शिव के जीवन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन जाती हैं, जो उन्हें उनकी भूमिका और जिम्मेदारी को समझने में मदद करती हैं।

चंद्रवंशी और नागाओं के साथ संघर्ष

कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मेलुहा और चंद्रवंशियों के बीच का संघर्ष है। मेलुहावासी चंद्रवंशियों को बुराई का प्रतीक मानते हैं, जबकि चंद्रवंशी मेलुहावासियों को क्रूर और अत्याचारी मानते हैं। शिव को धीरे-धीरे यह एहसास होता है कि अच्छाई और बुराई की अवधारणाएं व्यक्ति के दृष्टिकोण पर आधारित होती हैं। चंद्रवंशी, जिन्हें मेलुहावासी राक्षस मानते हैं, वास्तव में उतने बुरे नहीं हैं, जितना उन्हें बताया गया था।

शिव के नेतृत्व में, मेलुहावासी चंद्रवंशियों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार होते हैं। इस दौरान, शिव को यह भी पता चलता है कि नागा, जो चंद्रवंशियों के सहयोगी माने जाते हैं, विकृत और खतरनाक योद्धा हैं, लेकिन उनके बारे में कई रहस्य छिपे हुए हैं, जो शिव को आगे की यात्रा में समझ में आते हैं। नागा सभ्यता का रहस्य और उनकी भूमिका कहानी को और जटिल और रहस्यमय बनाती है।

शिव की आंतरिक यात्रा

जहाँ एक ओर शिव बाहरी खतरों से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनके भीतर भी एक संघर्ष चल रहा है। उन्हें यह समझ में आना शुरू होता है कि केवल शारीरिक युद्धों से संसार को नहीं बदला जा सकता। अच्छाई और बुराई की रेखाएं धुंधली हो जाती हैं, और उन्हें यह जानने की जरूरत होती है कि किसके साथ लड़ना है और किसके खिलाफ। यह आंतरिक यात्रा शिव को एक साधारण मानव से एक महान नेता और दार्शनिक की ओर ले जाती है।

शिव का सबसे बड़ा संघर्ष खुद को "नीलकंठ" के रूप में स्वीकारने का होता है। वह अपनी किस्मत को लेकर सवाल करते हैं, क्या वे वास्तव में मसीहा हैं या यह केवल एक संयोग है? वह यह भी समझते हैं कि उनकी भूमिका केवल एक योद्धा की नहीं, बल्कि एक विचारशील और नैतिक नेतृत्वकर्ता की है, जिसे समाज में बदलाव लाने के लिए सही फैसले लेने होंगे।


मुख्य विषय और संदेश

"द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा" का प्रमुख संदेश यह है कि अच्छाई और बुराई की अवधारणाएं समय, परिस्थितियों और व्यक्ति के दृष्टिकोण के अनुसार बदलती हैं। शिव का चरित्र इस जटिलता को दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से अच्छा या बुरा नहीं होता। यह पुस्तक कर्म, भाग्य और मानवता के बीच संतुलन की बात करती है, जहाँ शिव को यह समझ में आता है कि एक नेता का काम केवल युद्ध लड़ना नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन को सही दिशा में मार्गदर्शन देना भी है।

अमीश त्रिपाठी ने भारतीय पौराणिक कथाओं को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, जहाँ देवता भी इंसान होते हैं और इंसानों की तरह ही भावनाएं, सवाल और कमजोरियां होती हैं। शिव का चरित्र इसी मानवीयता को दर्शाता है, जहाँ वह अपने संघर्षों और गलतियों से सीखते हैं और अंततः एक महान नेता के रूप में उभरते हैं।

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उपसंहार

"द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा" एक ऐसी पुस्तक है जो न केवल पौराणिक कथाओं के प्रेमियों को आकर्षित करती है, बल्कि इसमें मानवता, राजनीति, नैतिकता और दर्शन के सवाल भी उठाए गए हैं। यह कहानी शिव की एक साधारण मानव से लेकर देवता बनने की यात्रा को दर्शाती है, जिसमें वह समाज की जटिलताओं और अच्छाई-बुराई की धुंधली रेखाओं से रूबरू होते हैं।

अमीश त्रिपाठी ने इस पुस्तक के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि भारतीय पौराणिक कथाएं आज भी कितनी प्रासंगिक हैं, और उन्हें एक नए और समकालीन दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। "द इम्मोर्टल्स ऑफ मेलुहा" की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यह न केवल एक रोमांचक काल्पनिक कहानी है, बल्कि इसमें भारतीय संस्कृति, परंपराओं और नैतिकता के गहरे संदर्भ भी निहित हैं।

   आशा करता हु आप जरूर किताब पढेंगे, आपको ये लेख कैसा लगा मुझे जरूर बताएं। साथ आप मुझसे जुड़ सकते है।

पढ़ते रहिए, आगे बढ़ते रहिए।