आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan
अज़रबैजान(Azerbaijan) और आर्मेनिया(Armenia) ये दोनों देश रशिया, टर्की और इरान के बीच मे बसे(situated) है। हाल ही में आपने इनके बीच चल रहे विवाद के बारे तो पढ़ा या सुना ही होगा। इन दोनों देशों में जबरदस्त टकराव चल रहा है। कई लोगों का ये कहना है कि अगर ये विवाद ऐसे ही बढ़ता है और अगर कही बड़ा रूप धारण कर लेता है, तो ये विवाद युद्ध(War) मे बदल सकता है। इसके पीछे क्या कारण है? और ये किस वजह से इतनी रूद्र रूप धारण किया हुआ है? ये जानने से पहले आपको इन दोनों देशों के बारे के जानना होगा। ये दोनों देश अज़रबैजान और आर्मेनिया, 1992 तक भूतपूर्व सोवियत संघ(Soviet Union) का भाग थे। सोवियत संघ के टूटने पर ये दोनों देश आजाद हो गये।तो चलिये आपको मैं अझरबैजान(Azerbaijan) और आर्मेनिया(Armenia), दोनों देशों के बारे जानकारी पहले बता दु।
अझरबैजान-Azerbaijan-
जनसंख्या- 1 करोड़ (10 million) 2019 के अनुसार
अज़रबैजान एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वर्ष २००१ से काउंसिल का सदस्य है। अधिकांश जनसंख्या, लगभग 97% मुस्लिम धर्म के अनुयायी है और यह देश इस्लामी सम्मेलन संघ का सदस्य राष्ट्र भी है। यह देश धीरे-धीरे औपचारिक लेकिन सत्तावादी लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है। कहने के लिये तो यह देश एक प्रजासत्ताक, गणतंत्र का देश है, लेकिन यहा असल मे तानाशाही जैसा माहौल है। जब ये देश स्वतंत्र हुआ, उसके बाद उनके तीसरे राष्ट्राध्यक्ष बने हैदर अलियेव(Heydar Aliyev) 1993 में । 1993 से लेकर 2003 तक वो ही राष्ट्राध्यक्ष बने रहे। उसके बाद 2003 में उनके बेटे इल्हाम अलियेव(Ilham Aliyev) राष्ट्राध्यक्ष बने और वो आज तक है। 2003 के बाद वो हर एक चुनाव जीतते गए, वो भी भारी बहुमत से। इस देश मे ना ही कोई मीडिया को छूट है और उनका कोई विरोधी भी नही है। 200 के लगभग उन्होंने विरोधी पार्टी के लोगो बंद किया हुआ है। साथ ही में अगर सरकार के खिलाफ कोई बोलता है, तो उसको हिरासत में लिया जाता है।
अभी हाल फिलहाल में अलियेव(Aliyev) ने राष्ट्राध्यक्ष बनने की जो Age है वो बदल कर 35 वर्ष से लेकर 18 वर्ष कर दी गयी है। लोगो को कहना है कि, ये उन्होंने उनके बेटे के लिए किया है।जिसे वो 2025 में राष्ट्राध्यक्ष बनाना चाहते है। कोई भी स्वयंसेवी संस्था या स्वतंत्र मीडिया नही है। इसी कारण से अज़रबैजान का Democracy Index - 147/167 है। मतलब 165 प्रजातंत्र देशों में इनका नंबर है 147वा। तो आप समझ सकते है, प्रजातंत्र का हाल कितना बुरा है।
आर्मेनिया-Armenia -
जनसंख्या- 30 लाख ( 3 million) 2020 के अनुसार
सोवियत संघ में एक जनक्रान्ति एवं राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया को २३ अगस्त १९९० को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई, परन्तु इसके स्थापना की घोषणा २१ सितंबर, १९९१ को हुई एवं इसे आंतरराष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। आर्मेनिया(Armenia) भी अज़रबैजान के जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। 2011 के अनुसार 95% लोग ईसाई(Christian) धर्म का पालन करते है। आर्मेनिया का भी हाल 2 साल पहले बुरा था, जैसा अभी अज़रबैजान का है। प्रजातंत्र का वहा बुरा हाल था, लेकिन 2018 में वहा 'VELVET REVOLUTION' हुआ। इस क्रांति में 2.5 लाख लोक शामिल हुए, अपने तानाशाह के खिलाफ यह एक शांततापूर्ण आंदोलन हुआ था और वो चुनाव में हो रहे धोखाधड़ी के खिलाफ था। यह हालफिलहाल का सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन था, जिसमे ना किसी की जान गई और ना ही कोई गोली चली। इस आंदोलन के बाद तानाशाही के जगह एक प्रजातंत्र प्रस्थापित हुआ और निष्पक्ष चुनाव के बाद निकोल पाशिनान (Nikol Pashinyan) वहा के प्रधानमंत्री बने। अब आर्मेनिया का Democracy Index- 76/167 है।
ये हो गई दोनो देशो की जानकारी। ये दोनों देश आज युद्ध की कगार पर है, जिसका कारण है दोनों देशों के सीमा पर स्थित नागोर्नो-काराबाख(Nagorno-Karabakh) का प्रदेश और इसी प्रदेश को लेकर दोनों के बीच जंग की स्थिति बनी हुई है। दोनो देश इस नागोर्नो-काराबाख को अपना कहते है। ऐसी स्थिति में इस पूरे प्रदेश का छोटासा हिस्सा अज़रबैजान के पास है, तो बहोत सारा आर्मेनिया के पास है। नागोर्नो-काराबाख का प्रदेश पहाड़ी क्षेत्र है, जिस कारण बहोत कम लोग रहते है और उनमें ज्यादा तर मूल के आर्मेनियन के लोग है। 2015 के रिपोर्ट के अनुसार 1.5 लाख लोग यहां रहते है।जिसमे से 99.5 % से ज्यादा लोग आर्मेनियन मूल निवासी है।
इतिहास देखेंगे तो 1920 से ही ये पूरा प्रदेश विवादित रहा है, जब ये सोवियत यूनियन का हिस्सा था। तब ये प्रदेश अज़रबैजान का हिस्सा तो था लेकिन ऑटोनॉमस क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मॉस्को से कंट्रोल किया जाता था। जब 1990 में सोवियत यूनियन टूटी, उससे ही ये खबर इस क्षेत्र में फैल गयी की जाते जाते सोवियत यूनियन नागोर्नो-काराबाख का प्रदेश अज़रबैजान में शामिल करने वाले है। ये बात यहा के मूल आर्मेनियन को पसंद नही आई और उन्होंने इस क्षेत्र में 1998 में चुनाव किया था। उसमे उन्होंने इस प्रदेश को अर्मेनिया में शामिल करने का चुनाव हुआ। लेकिन ये बात ना अज़रबैजान की सरकार को पसंद आया औऱ ना ही सोवियत यूनियन सरकार को पसंद आई। उन्होंने इस बात का विरोध किया। लेकिन जब सोवियत यूनियन टूटू तो आर्मेनियन अलगाववादी नेताओं ने इस प्रदेश को जब्त कर लिया और तब से लेके आज तक आर्मेनियन अलगाववादी नेता यहा पर आर्मेनिया सरकार की मदत से सत्ता में है। लेकिन सोवियत यूनियन टूटते वक्त सरकार ने इस प्रदेश को अज़रबैजान के कंट्रोल में दिया था, तो आंतरराष्ट्रीय कानून के तहत ये प्रदेश अज़रबैजान का हिस्सा है। तब से लेकर आज तक ये प्रदेश विवादों में रहा है।
विवादों के चलते हर कुछ सालों में यहा पर हमले होते रहते है, गोलीबारी, धमाके होते रहते है। हालफिलहाल जो विवाद शुरू हुआ है, वो भी इसी का नतीजा है। लेकिन जब भी इन में छोटी-मोटी लड़ाई होती है, तो इसे मिटाने में रशिया एक अहम भूमिका निभाता है। साथ ही में दोनों देशों के साथ रशिया के अच्छे संबंध है। जहाँ रशिया का मिलिटरी बेस (Military Base) है आर्मेनिया में, वहीं अज़रबैजान भी रशिया से युद्व सामग्री खरीदने में बड़ा भागीदार है। तो जब भी इनमें विवाद हुए तो उन्हें मिटाने के लिए रशिया आगे आई है। लेकिन इस रशिया की और से अभी तक कोई भी कदम नही उठाया गया। वही इसी विवाद में टर्की(Turkey) देश अज़रबैजान की और से खड़ा हुआ है। उन्होंने अज़रबैजान को अपना भागीदार कहते हुए हर तरह की मदत देने की घोषणा की है। तो आगे चलकर ये विवाद एक बड़े जंग में भी बदल सकता है।
तो दोस्तों आपको क्या लगता है? इस विवाद को लेकर अपना ओपिनियन(opinion) क्या रखते है? Comment में जरूर बताएगा और साथ ही में मेरा ये आज का लेख आपको कैसा लगा वो भी बता दीजिए।
Bahut achha content hai bhae
जवाब देंहटाएंthank you
जवाब देंहटाएं