रविवार, 18 अक्टूबर 2020

आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan

आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan


अज़रबैजान(Azerbaijan) और आर्मेनिया(Armenia) ये दोनों देश रशिया, टर्की और इरान के बीच मे बसे(situated) है। हाल ही में आपने इनके बीच चल रहे विवाद के बारे तो पढ़ा या सुना ही होगा। इन दोनों देशों में जबरदस्त टकराव चल रहा है। कई लोगों का ये कहना है कि अगर ये विवाद ऐसे ही बढ़ता है और अगर कही बड़ा रूप धारण कर लेता है, तो ये विवाद युद्ध(War) मे बदल सकता है। इसके पीछे क्या कारण है? और ये किस वजह से इतनी रूद्र रूप धारण किया हुआ है? ये जानने से पहले आपको इन दोनों देशों के बारे के जानना होगा। ये दोनों देश अज़रबैजान और आर्मेनिया, 1992 तक भूतपूर्व सोवियत संघ(Soviet Union) का भाग थे। सोवियत संघ के टूटने पर ये दोनों देश आजाद हो गये।तो चलिये आपको मैं अझरबैजान(Azerbaijan) और आर्मेनिया(Armenia), दोनों देशों के बारे जानकारी पहले बता दु।

अझरबैजान-Azerbaijan

ध्वज-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan

चिन्ह-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan

नक्शा-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan


जनसंख्या- 1 करोड़ (10 million) 2019 के अनुसार

   अज़रबैजान एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वर्ष २००१ से काउंसिल का सदस्य है। अधिकांश जनसंख्या, लगभग 97% मुस्लिम धर्म के अनुयायी है और यह देश इस्लामी सम्मेलन संघ का सदस्य राष्ट्र भी है। यह देश धीरे-धीरे औपचारिक लेकिन सत्तावादी लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है। कहने के लिये तो यह देश एक प्रजासत्ताक, गणतंत्र का देश है, लेकिन यहा असल मे तानाशाही जैसा माहौल है। जब ये देश स्वतंत्र हुआ, उसके बाद उनके तीसरे राष्ट्राध्यक्ष बने हैदर अलियेव(Heydar Aliyev) 1993 में । 1993 से लेकर 2003 तक वो ही राष्ट्राध्यक्ष बने रहे। उसके बाद 2003 में उनके बेटे इल्हाम अलियेव(Ilham Aliyev) राष्ट्राध्यक्ष बने और वो आज तक है। 2003 के बाद वो हर एक चुनाव जीतते गए, वो भी भारी बहुमत से। इस देश मे ना ही कोई मीडिया को छूट है और उनका कोई विरोधी भी नही है। 200 के लगभग उन्होंने विरोधी पार्टी के लोगो बंद किया हुआ है। साथ ही में अगर सरकार के खिलाफ कोई बोलता है, तो उसको हिरासत में लिया जाता है।
   अभी हाल फिलहाल में अलियेव(Aliyev) ने राष्ट्राध्यक्ष बनने की जो Age है वो बदल कर 35 वर्ष से लेकर 18 वर्ष कर दी गयी है। लोगो को कहना है कि, ये उन्होंने उनके बेटे के लिए किया है।जिसे वो 2025 में राष्ट्राध्यक्ष बनाना चाहते है। कोई भी स्वयंसेवी संस्था या स्वतंत्र मीडिया नही है। इसी कारण से अज़रबैजान का Democracy Index - 147/167 है। मतलब 165 प्रजातंत्र देशों में इनका नंबर है 147वा। तो आप समझ सकते है, प्रजातंत्र का हाल कितना बुरा है।

आर्मेनिया-Armenia - 

ध्वज-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan

चिन्ह-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan

नक्शा-
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan


जनसंख्या- 30 लाख ( 3 million) 2020 के अनुसार

   सोवियत संघ में एक जनक्रान्ति एवं राज्यों के आजादी के संघर्ष के बाद आर्मीनिया को २३ अगस्त १९९० को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई, परन्तु इसके स्थापना की घोषणा २१ सितंबर१९९१ को हुई एवं इसे आंतरराष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। आर्मेनिया(Armenia) भी अज़रबैजान के जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। 2011 के अनुसार 95% लोग ईसाई(Christian) धर्म का पालन करते है। आर्मेनिया का भी हाल 2 साल पहले बुरा था, जैसा अभी अज़रबैजान का है। प्रजातंत्र का वहा बुरा हाल था, लेकिन 2018 में वहा 'VELVET REVOLUTION' हुआ। इस क्रांति में 2.5 लाख लोक शामिल हुए, अपने तानाशाह के खिलाफ यह एक शांततापूर्ण आंदोलन हुआ था और वो चुनाव में हो रहे धोखाधड़ी के खिलाफ था। यह हालफिलहाल का सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन था, जिसमे ना किसी की जान गई और ना ही कोई गोली चली। इस आंदोलन के बाद तानाशाही के जगह एक प्रजातंत्र प्रस्थापित हुआ और निष्पक्ष चुनाव के बाद निकोल पाशिनान (Nikol Pashinyan) वहा के प्रधानमंत्री बने। अब आर्मेनिया का Democracy Index- 76/167 है।

   ये हो गई दोनो देशो की जानकारी। ये दोनों देश आज युद्ध की कगार पर है, जिसका कारण है दोनों देशों के सीमा पर स्थित नागोर्नो-काराबाख(Nagorno-Karabakh) का प्रदेश और इसी प्रदेश को लेकर दोनों के बीच जंग की स्थिति बनी हुई है। दोनो देश इस नागोर्नो-काराबाख को अपना कहते है। ऐसी स्थिति में इस पूरे प्रदेश का छोटासा हिस्सा अज़रबैजान के पास है, तो बहोत सारा आर्मेनिया के पास है। नागोर्नो-काराबाख का प्रदेश पहाड़ी क्षेत्र है, जिस कारण बहोत कम लोग रहते है और उनमें ज्यादा तर मूल के आर्मेनियन के लोग है। 2015 के रिपोर्ट के अनुसार 1.5 लाख लोग यहां रहते है।जिसमे से 99.5 % से ज्यादा लोग आर्मेनियन मूल निवासी है।
आर्मेनिया-अझरबैजान संघर्ष- Conflict of Armenia-Azerbaijan


   इतिहास देखेंगे तो 1920 से ही ये पूरा प्रदेश विवादित रहा है, जब ये सोवियत यूनियन का हिस्सा था। तब ये प्रदेश अज़रबैजान का हिस्सा तो था लेकिन ऑटोनॉमस क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मॉस्को से कंट्रोल किया जाता था। जब 1990 में सोवियत यूनियन टूटी, उससे ही ये खबर इस क्षेत्र में फैल गयी की जाते जाते सोवियत यूनियन नागोर्नो-काराबाख का प्रदेश अज़रबैजान में शामिल करने वाले है। ये बात यहा के मूल आर्मेनियन को पसंद नही आई और उन्होंने इस क्षेत्र में 1998 में चुनाव किया था। उसमे उन्होंने इस प्रदेश को अर्मेनिया में शामिल करने का चुनाव हुआ। लेकिन ये बात ना अज़रबैजान की सरकार को पसंद आया औऱ ना ही सोवियत यूनियन सरकार को पसंद आई। उन्होंने इस बात का विरोध किया। लेकिन जब सोवियत यूनियन टूटू तो आर्मेनियन अलगाववादी नेताओं ने इस प्रदेश को जब्त कर लिया और तब से लेके आज तक आर्मेनियन अलगाववादी नेता यहा पर आर्मेनिया सरकार की मदत से सत्ता में है। लेकिन सोवियत यूनियन टूटते वक्त सरकार ने इस प्रदेश को अज़रबैजान के कंट्रोल में दिया था, तो आंतरराष्ट्रीय कानून के तहत ये प्रदेश अज़रबैजान का हिस्सा है। तब से लेकर आज तक ये प्रदेश विवादों में रहा है।
   विवादों के चलते हर कुछ सालों में यहा पर हमले होते रहते है, गोलीबारी, धमाके होते रहते है। हालफिलहाल जो विवाद शुरू हुआ है, वो भी इसी का नतीजा है। लेकिन जब भी इन में छोटी-मोटी लड़ाई होती है, तो इसे मिटाने में रशिया एक अहम भूमिका निभाता है। साथ ही में दोनों देशों के साथ रशिया के अच्छे संबंध है। जहाँ रशिया का मिलिटरी बेस (Military Base) है आर्मेनिया में, वहीं अज़रबैजान भी रशिया से युद्व सामग्री खरीदने में बड़ा भागीदार है। तो जब भी इनमें विवाद हुए तो उन्हें मिटाने के लिए रशिया आगे आई है। लेकिन इस रशिया की और से अभी तक कोई भी कदम नही उठाया गया। वही इसी विवाद में टर्की(Turkey) देश अज़रबैजान की और से खड़ा हुआ है। उन्होंने अज़रबैजान को अपना भागीदार कहते हुए हर तरह की मदत देने की घोषणा की है। तो आगे चलकर ये विवाद एक बड़े जंग में भी बदल सकता है।

   तो दोस्तों आपको क्या लगता है? इस विवाद को लेकर अपना ओपिनियन(opinion) क्या रखते है? Comment में जरूर बताएगा और साथ ही में  मेरा ये आज का लेख आपको कैसा लगा वो भी बता दीजिए।

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

भारत की बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

 बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

   आज भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा बसे बड़ा आबादी का देश है। जहा चीन की आबादी 144 करोड़ (1.44 billion) है, वही भारत की आबादी 138 करोड़ (1.38 billion) है। ये आंकड़े यूनाइटेड नेशन डेटा पर आधारित है। (based on Worldometer elaboration of the latest United Nations data.) भारत की जनसंख्या की रफ्तार को देख ऐसा कहा जाता है कि,2027 में भारत चीन को पीछा छोड़ दुनिया का सबसे बड़ा जनसंख्या का देश बन जायेगा। (The projections – made by the UN’s Population Division (in 2019)– suggest that by 2027, India will surpass China to become the world’s most populous country.)  अगर आप सोच रहे हो कि ये खुशी की बात है तो ठहरिये...

अत्याधिक जनसंख्या के परिणाम (Impact of Overpopulation on India)-

बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

जनसंख्या बढ़ने से या आबादी बढ़ने से-

  • गरीबी बढ़ना (Increase Poverty)
  • बेरोजगारी बढ़ना (Increase Unemployment)
  • वातावरण बदलाव (Climate Change)
  • जमीन और जंगलों पर तनाव (Environmental Destructions)
  • सामाजिक प्रश्नों की जटिलता बढना ( Social and Religious Conflicts)
   इन उपर की कारणों में बढ़ावा होता है और यही भारत को पीछा लेने जाने को मजबूर कर रहे है। जनसंख्या बढ़ने के परिणाम अभी से दिख रहे है। मुंबई, दिल्ली, बंगलोर, कोलकाता जैसे बड़े शहरों के साथ पूना, जयपुर, भोपाल जैसे शहर भी अब तकलीफ झेल रहे है। लोकल ट्रेन्स की भीड़, रास्तों पर लगी लंबी कतारें, मकानों का कम होना ऐसे कई असर हो रहे है। असर तो आपको पता ही है, लेकिन आज में बताना चाहूंगा कि इस को नियंत्रित कैसे करे, कौनसा सही रास्ता होगा और कौनसा नही।

बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

चीन की हम दो हमारा एक पालिसी (China's one child policy)-

   आजतक सभी लोग चीन की One Child पॉलिसी को अच्छी बता कर उसे भारत मे लागू करवाना चाहते थे। लेकिन चीन के इस कदम के वजह से आज वहा दुनिया मे सबसे ज्यादा लिंग असंतुलन पाया जाता है। 2015 में 30 साल बाद चीन ने खुद कबूल किया कि ये उनका एक गलत कदम था। जिस कारण चीन में 2004 में 122 लड़कों के मुकाबले 100 लडकिया पायी जाती थी। अगर वही भारत की बात करे तो 2011 के जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों के मुकाबले 914 लडकिया पायी जाती है। भारत एक रूढ़िवादी देश है, जहां आज भी लड़का घर का चिराग माना जाता है। आज भी भारत मे कई जगह लड़का ही हो इसलिए गलत तरीक़े अपनाये जाते है। ऐसे अगर भारत मे एक बच्चे की पॉलिसी लागू करेंगे, तो देश मे लिंग असंतुलन में बहोत ज्यादा बढ़ावा हो सकता है। तो भारत के लिहाज से देखा जाए तो ये सही तरीका नही है।

बढ़ती जनसंख्या को रोकने का सही तरीका (True Solution to Control Population)-

   बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिये या उसे बढ़ने ना देने के लिए एक सरल और आसान तरीका है। वो है शिक्षा को बढ़ावा देना और स्वास्थ्य के लिए उपाय करना। अच्छी और ऊंची शिक्षा से परिवार को नियोजित करने की समझ आती है और अच्छे स्वास्थ्य सुविधा होने से बाल मृत्यु दर में कमी आएगी। उसको अच्छे से समझने से पहले ये जानना जरूरी है की ये चीजें असर कैसे करेगी (how will it works) ? 

  • प्रजनन दर (Fertility Rate)
बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

   प्रजनन दर का मतलब है कि एक औरत अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है। किताबों के अनुसार ये दर 2 होना चाहिए, ताकी जितने मरेंगे उतने ही जन्म लेकर उनकी जगह लेंगे। लेकिन प्रैक्टिकली इसे 2.2 सही कहा जाता है। क्योंकि बाल मृत्यु की वजह से इसे प्रस्थापित कर सके। तो जो देश औसतन 2.2 दर के नजतिक रहता है, वहा जनसंख्या नियंत्रण में रहती है। ऐसे में हमे जानना होगा कि इसका शिक्षा और स्वास्थ्य से क्या संबंध है? 

(What is the Correlation between Literary rate and Fertility rate along with Health)

बढ़ती जनसंख्या (Indian Overpopulation) - परिणाम और उपाय(Impact and Resolution)

दुनियाभर में ज्यादा तर पाया गया है कि शिक्षा दर बढ़ने से प्रजनन दर कम हो जाता है। जितना ज्यादा शिक्षा का प्रचार होगा या शिक्षा अर्जित की जाएगी। उसका असर प्रजनन दर कम होने पर होता है। अगर भारत की ही बात करे तो केरल सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य है। केरला में शिक्षा दर( Literary Rate) 100% के नजदीक है और वहा प्रजनन दर सबसे कम (1.6) है। वही दूसरी और बिहार जैसे राज्य में शिक्षा दर बहोत कम है , तो वहां पर प्रजनन दर सबसे ज्यादा है। तो अगर भारत की बात करे तो ज्यादातर राज्य अब प्रजनन दर 2.2 से कम है। लेकिन कुछ राज्यों कि वजह से ये जनसंख्या असंतुलन बना हुआ है। इसके लिए वहाँ की सरकार को शिक्षा पर ध्यान देना जरूरी है।

   ऐसे में अगर प्रजनन दर कम होता है तो भारत की जनसंख्या कम होने का खतरा भी है। क्योंकि उससे बूढ़े लोगो की तादाद बढ़ेगी और नौजवान कम हो जाएंगे। जिससे भारत की प्रगति पर असर पड़ेगा। इसलिए हम शिक्षा के साथ स्वास्थ्य के ऊपर भी ध्यान देना जरूरी है। क्योंकि अच्छी स्वास्थ्य सुविधा ही बाल मृत्यु दर को कम करके जनसंख्या को नियंत्रित कर सकती है। इसके लिए हमे एक अच्छी सरकार चाहे जो इन चीजों पर ध्यान दे, ना की सिर्फ बयान बाजी औऱ अलग अलग योजनाओं में जनता को फसाये। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो सरकार काम करने का वादा करे उन्हें ही जिताया जाए और वो वादा उनसे पूरा करके लिया जाए। नही तो अगली बार आप सोच लीजिये...


   शिक्षा क्षेत्र में केरला , दिल्ली, महाराष्ट्र सरकार एक अच्छा प्रावधान करते है। उन्होंने शिक्षा की और एक अच्छा नजरिया रखा है। भारत सरकार और अन्य राज्यों को भी शिक्षा को बढ़ाने के लिए सही कदम उठाने होंगे। साथ ही में स्वास्थ्य क्षेत्र में भी एक अच्छा कदम उठाना जरूरी है।

   जाते जाते, महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) की और से की गई प्रावधानों को सराहना चाहूंगा। इस कोरोना काल मे उन्होंने एक अच्छी सरकार होने को निभाया है। बेशक उसमे कई सारी खामिया पायी जाएगी, बहोत सारे लोगो को तकलीफ भी हुई। लेकिन इन सब के बावजूद पहली बार मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे जी ने जो मुंबई शहर में कोरोना को फैलने से बचाया। वो काबिले तारीफ है। इसी के साथ महाराष्ट्र में अन्य जगहों पर भी की जा रही बहोत सारी गतिविधियों को मैं सराहना चाहूंगा। इसमें और भी अच्छा अभी भी किया जा सकता है और करना चाहिए।

   यही कहकर में आज का ये लेख समाप्त करता हु। आशा करता हु की ये आपको पसंद आया होगा, तो शेयर करे । ताकि और लोग भी इसके बारे में जान पाए।


शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

MI Vs RCB | आशा ही हमे उम्मीद देती है-Hope is the key to Motivation

आशा ही हमे उम्मीद देती है-Hope is the key to Motivation

आशा ही हमे उम्मीद देती है-Hope is the key to Motivation

Date- 28th September 2020

   MI Vs RCB- ये रोमांचक सामना (Match) आप सब ने जरूर देखा होगा। जिसमें आप Super Over के Last Ball तक Decide नही कर सकते थे, ऐसा ये कल का मैच था। अगर आपने बारीकी से देखा होगा तो सीखा भी होगा। अगर नही तो चले आइए इसी पर आपको बताते भी है और समझाते भी है। तो MI Vs RCB Match से क्या सीखा आपने? (What You Learn From Match?)

1. Match का सारांश (Match Summary) -

   RCB Team पहले batting शुरू करती है। जहा एक अच्छी शुरुवात मिलती है, फिर Match के Middle में कप्तान विराट कोहली (Captain Virat Kohli) को जल्दी जाना पड़ता है।लेकिन बाकी Team के प्रदर्शन से एक अच्छा Score- 201 बन जाता है। जहाँ पर लगभग 50 % आश्वस्त हो जाते है कि MI के लिए जितना मुश्किल है। MI की शुरुवात होते ही Rohit Sharma Out हो जाते है और सबको लगने लगता है कि RCB will Win the Match.

   लेकिन यही से पलटवार भी शुरू होता है, जो Match आसानी से RCB जीत सकती है ऐसा लग रहा था। वो ही Match आसानी से अभी MI जीतेगी ऐसा लगने लगता है। आखिरी की 2 Balls पर Match पलटकर फिर से Tie हो जाता है। Match फिर Super Over में चला जाता है।

   Super Over में बड़ी मुश्किलों के बाद ये Match की जीत RCB के पक्ष में जाती है।

2- सबक / सीख (Learning Lesson)- 

   इतने Exciting Match की आखिर में पलभर में जीत RCB की तरफ होती, दूसरे पल में MI के तरफ। अगर Rohit, De cock  और Hardik के Out होने पर बाकी Team हौसला हार जाती तो क्या ये मुमकिन था जीत के करीब जाना? दूसरी और अगर आखरी Over में RCB लगातार दो 6 के बाद अगर उम्मीद हार देती तो Match क्या Tie हो पाता? उसी तरह सामने इतने दिग्गज खिलाड़ी होने के बावजूद Saini ने पूरी मेहनत के साथ Over डाली, अगर वो उम्मीद खो देते या हौसला खो देते तो क्या होता? उसके बाद Virat Kohli और De Villiers हौसले से ना खेलते तो क्या जीत पाते आखरी ball पर?

   दोस्तों, इस पूरे Match पर आपने गौर किया होगा तो आपको पता चला होगा कि दोनों ही Team के Players हौसले के साथ खेल रहे थे। जहाँ पर एक ही उम्मीद , एक ही लक्ष्य और एक ही Goal था - जीत का। तो आपको भी तो वही करना है जिंदगी में, वो ही सोचना है।


3- स्पष्टीकरण ( Clarification) -

   साथियों जीवन भी तो match के अनुसार ही है। जब कोई Problem नहीं तब अपना Platform बनाओ, बिना किसी Risk से अपने Goal की और अपने लक्ष्य की और बढ़ते जाओ। जैसे ही लगने लगे की अब आगे आपका सफर संभलकर और समझकर चलना है तो अपना रास्ता बनाओ। मुश्किल को हल कर अपने लक्ष्य की और बढ़ते जाओ। हो सकता है आप हार जाओ, लेकिन उम्मीद के साथ कोशिश तो करो। ताकि बाद में ये ना कह सको की अगर कुछ करता तो शायद में मुकाम तक पहुंच पाता। आप को कोशिश कभी बेकार नही जाती, आपकी वो ही उम्मीद फिर से उभरने की आशा दिखाती है। कही पर उम्मीद के बारे में पढ़ा था कि 

"उम्मीद के बगैर आदमी जीवित ही नही रह सकता।"

उसी के साथ हमारी भारत की बॉक्सर (Indian Boxer) मेरी कोम (Mary Kom) जी कहती है-

" एक हार के बाद भी जिंदगी में बहुत सारे अवसर मिलते है।"

और अलीबाबा के फाउंडर (Founder of Alibaba)- जैक मा कहते है- "Giving up is the Greatest Failure in Life."

तो दोस्तो, आखिर में यही कहूंगा कि सपना अगर बड़ा होगा तो मुश्किलें जरूर आयेंगी। उन्ही मुश्किलों से निकलने का रास्ता भी ढूंढना है और अपनी मंज़िल तक भी पहुंचना है। क्योंकि

"बिना मेहनत कभी जीत नही मिलती और मिल भी जाये तो उसकी कोई कीमत नही बचती।" खुशी तो तब मिलती है जब उस मंजिल को आप ने मेहनत से पाया हो।

इसी के साथ अपना लेख यही खत्म करता हु। आपके अभिप्राय जरूर बताये और मेरे इस Post को Share जरूर करे। अगर किसी भी तरह से कुछ गलत लिखा होगा तो माफी चाहूंगा और आगे भी आप पढ़ने आएंगे, ऐसी आशा करूँगा।

पढ़ते रहिए, आगे बढ़ते रहिए।